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कविता

ठोंक दो कीलें

प्रतिभा कटियार


ठोंक दो कीलें हथेलियों में
खींच लो जबान हलक से
जोर से करो वार रीढ़ की हड्डी पर
नाखूनों में खप्पचियाँ घुसा दो
तोड़ दो सर पे ढेर सारी काँच की बोतलें
तेजाब की नदी बहा दो जिस्म पर
कोड़ों से पीठ छलनी कर दो
आओ हत्या ही कर दो तुम मेरी
बस कि हमारी बेबसी है कि
नहीं बन सकते समझौतापरस्त
और तुम्हारी बेबसी
कि नहीं हिला सकते फौलादी इरादों से हमें...
 


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